tag:blogger.com,1999:blog-12002685710162805912024-02-18T18:06:59.636-08:00कैम्पसयादों का, संवेदनाओं का, संभावनाओं काSaurabh Sumanhttp://www.blogger.com/profile/13529168664401073213noreply@blogger.comBlogger57125tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-18058219413553458122011-08-13T06:42:00.000-07:002011-08-13T06:42:05.187-07:00सुधीर राघव: वेदों में है सनहार्वेस्टर की धारणा<a href="http://sudhirraghav.blogspot.com/2011/08/blog-post.html#links">सुधीर राघव: वेदों में है सनहार्वेस्टर की धारणा</a>
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<br /><a href="http://twitter.com/home?status=Reading" title=""><img src="http://static.ak.fbcdn.net/rsrc.php/zq/r/RwaZQIP0ALn.gif" /></a>सुधीर राघवhttp://www.blogger.com/profile/00445443138604863599noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-37723485681829039222011-07-22T08:46:00.000-07:002011-07-22T08:46:34.173-07:00सुधीर राघव: रसद और मदद के सिग्नल हैं मंत्र<a href="http://sudhirraghav.blogspot.com/2011/07/blog-post_20.html">सुधीर राघव: रसद और मदद के सिग्नल हैं मंत्र</a><br /><br /><a href="http://twitter.com/home?status=Reading" title=""><img src="http://static.ak.fbcdn.net/rsrc.php/zq/r/RwaZQIP0ALn.gif" /></a>सुधीर राघवhttp://www.blogger.com/profile/00445443138604863599noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-79037406324943160312011-07-06T08:21:00.000-07:002011-07-06T08:21:06.686-07:00सुधीर राघव: अंतरिक्षयान का वर्णन भी है यजुर्वेद में<a href="http://sudhirraghav.blogspot.com/2011/07/blog-post.html">सुधीर राघव: अंतरिक्षयान का वर्णन भी है यजुर्वेद में</a><br /><br /><a href="http://twitter.com/home?status=Reading" title=""><img src="http://static.ak.fbcdn.net/rsrc.php/zq/r/RwaZQIP0ALn.gif" /></a>सुधीर राघवhttp://www.blogger.com/profile/00445443138604863599noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-60187795756516822342011-06-16T08:30:00.000-07:002011-06-16T08:30:20.485-07:00सुधीर राघव: क्रमविकास नहीं, मनुष्य को रचा गया<a href="http://sudhirraghav.blogspot.com/2011/06/blog-post_16.html#links">सुधीर राघव: क्रमविकास नहीं, मनुष्य को रचा गया</a>सुधीर राघवhttp://www.blogger.com/profile/00445443138604863599noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-1680666284077801172009-09-21T11:08:00.000-07:002009-09-21T11:09:41.632-07:00वेदान्त का सूक्ष्म शरीर ही है डीएनएवेदान्त दर्शन में जिसे सूक्ष्म शरीर कहा गया है क्या वह असल में डीएनए की ओर ही संकेत है। कहा गया है कि सूक्ष्म शरीर मन, बुद्धि और अहंकार से मिलकर बना है। डीएनए के भी दो मुख्य गुण हैं, जिनकी वजह से उसे जीवन का आधार कहा जाता है- सेंस और एंटी सेंस। सेंस ही बुद्धि है और एंटीसेंस प्रतिक्रिया यानी अहंकार। <br />इस संबंध में विस्तार से पढ़ें-http://sudhirraghav.blogspot.com/सुधीर राघवhttp://www.blogger.com/profile/00445443138604863599noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-34079092115853546242009-08-06T12:16:00.000-07:002009-08-06T13:16:43.103-07:00एप्रीशिएट करें राखी को<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgabQtspUAeYnA5f50VvSV0VtjYrzz7fYBi-nYQLEwn3BAnEd6Nii7hIZAPEPqYQawf7cuBWL9VAv2vlvTiOi7e0to3tzFRnVQ7R4Bv6eI6cVM8L4757JPV1K4tRxOMidBlfK_4ZNfXr1o/s1600-h/normal_rakhi_sawant2.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 267px; height: 399px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgabQtspUAeYnA5f50VvSV0VtjYrzz7fYBi-nYQLEwn3BAnEd6Nii7hIZAPEPqYQawf7cuBWL9VAv2vlvTiOi7e0to3tzFRnVQ7R4Bv6eI6cVM8L4757JPV1K4tRxOMidBlfK_4ZNfXr1o/s400/normal_rakhi_sawant2.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5366946277590970482" /></a><span class="Apple-style-span" style=" white-space: pre-wrap; font-family:Mangal;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">राखी के बारे में लोग अच्छे विचार क्यों नहीं रखते? मुझे ताज्जुब होता है कि जिस लड़की ने अपने दम पर सब कुछ हासिल किया है, उसकी अच्छाईयों को न केवल लोग नजरअंदाज करते हैं, बलि्क उसे गलत कहने से भी गुरेज नहीं करते। इंटरनेट पर भी आप सचॆ कर लें, वहां भी या तो विशेष टिप्पणियों के साथ राखी पर खबरें होंगी या फिर उसके बारे में कुछ निगेटिव ही लिखा होगा। राखी ने कोई भी ऐसा काम नहीं किया है, जो इससे पहले किसी ने न किया हो, हां, उसका फायदा जरूर राखी सावंत को ज्यादा मिला है। क्या बॉलीवुड में राखी अकेली आइटम गर्ल हैं या फिर कम कपड़े पहनने में राखी सबसे आगे हैं। सबसे बड़ा कारण उसकी उपलिब्धयां हैं। शायद हम इस तरह से उसकी सफलता को पचा नही पा रहे हैं। राखी एक ऐसे परिवेश से इस मुकाम तक पहुंची है, जहां की लड़कियां यहां तक पहुंचने के लिए सिर्फ कल्पना ही कर सकती हैं। उसने जो कुछ हासिल किया है, अपनी सूझबूझ से और अपने प्रबंधन से। प्रबंधन मीडिया का, प्रबंधन समय का और प्रबंधन अपने करियर को आगे ले जाने का। हर व्यकित् की अपनी परिसि्थतियां होती हैं और उसे उन्हीं परिसि्थतियों में जीना होता है। राखी ने अपनी परिसि्थतियों में जो कुछ किया और जो कुछ पाया अगर हम उसे एप्रिसिएट नहीं कर सकते तो शायद हमें बेवजह उसे गलत साबित करने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिए। एक बेहतरीन डांसर राखी सावंत ने अपने डांस के बल पर ही यह मुकाम हासिल किया है। अपनी प्रतिभा के बल पर ही उसने स्वयंवर जैसे शो से दर्शकों को जोड़े रखा। हां, वह मुंहफट है, क्योंकि वह जानती है कि यही उसके पास है, जिसके बल पर वह खबरों में बनी रह सकती है। अगर ये गलत है तो इसका एहसास सबसे पहले मीडिया वालों को होना चाहिए, क्योंकि उनके माध्यम से ही खबरें लोगों तक पहुंचती हैं। मिका को थप्पड़ मारकर उसने क्या गलत किया? अभिषेक से दोस्ती और प्यार का इजहार फिर उससे ब्रेकअप...इसमें नया क्या है? राखी सावंत नौटंकी है। ऐसा कहने वाले भी उसे अपने शो में बुलाते हैं और एक घंटे का इंटरव्यू प्रसारित करते हैं, क्यों? अगर वह नौटंकी है, तो क्यों उसके लिए आपने चैनल के एक घंटे का कीमती समय बर्बाद किया। राखी सावंत बिना वजह के रियलिटी शो में हंगामा खड़ी करती हैं...यह उनकी आदत है, क्योंकि वह सुर्खियों में रहना चाहती हैं। ऐसा कहने वाले चैनल उसे अपने शो में खड़ा करते हैं और उससे घंटे भर तक सवाल करते हैं। उन्हें मालूम है कि कार्यक्रम की टीआरपी हाई रहेगी। फिर जब आप उसकी बेबाकी और उसकी छवि को कैश करने में पीछे नहीं हो, तो जब वह अपने हक की आवाज उठाती है या अपनी कोई बात बेबाकी से कहती है, तो ऐतराज क्यों? एप्रीशिएट करें राखी को। उसमें बहुत संभावनाएं हैं और वह बहुत आगे जा सकती है। कभी उसके सकारात्मक पहलू का भी जिक्र करें। क्या ढूंढ़ने से उसका एक भी सकारात्मक पहलू नहीं मिलेगा?</span></span>Saurabh Sumanhttp://www.blogger.com/profile/13529168664401073213noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-78544978324109532032009-07-28T13:57:00.000-07:002009-07-28T14:02:42.868-07:00एक छोटी सी प्रेम कहानी में बड़े-बड़े टि्व्स्ट<span class="Apple-style-span" style=" ;font-family:'Times New Roman';"><div style="border-top-width: 0px; border-right-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px; border-style: initial; border-color: initial; margin-top: 0px; margin-right: 0px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; padding-top: 3px; padding-right: 3px; padding-bottom: 3px; padding-left: 3px; width: auto; font: normal normal normal 100%/normal Georgia, serif; text-align: left; "><span class="Apple-style-span" style="font-family:Mangal;"><span class="Apple-style-span" style="white-space: pre-wrap; "><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">चंद्रमोहन और अनुराधा उर्फ.फिजा की छोटी सी लव स्टोरी में इतने सारे टर्निंग प्वाइंट रहे हैं, कि आज अगर टेलीविजन पर एकता कपूर का राज चलता रहता तो वह इनकी प्रेम कहानी पर कहानी चांद फिजा की नाम से अब तक सीरियल बना चुकी होतीं। इनकी प्रेम कहानी में इजहार है, इनकार है, तकरार है, फिर प्यार का इकरार है। हालांकि एक बार इनकार के बाद शब्दों का वार तो चलता ही रहा है। कहने का मतलब कहानी पूरी फिल्मी से थोड़ी ज्यादा ही है। अगर उनकी प्रेम कहानी पर कोई फिल्म बन जाए तो चलेगी नहीं। चलेगी इसिलए नहीं, क्योंकि दर्शकों का पहला रिएक्शन यही होगा कि असल जिंदगी में ऐसा भी कहीं होता है। लेकिन ऐसा हुआ है और हो रहा है। यह ऐसा ड्रामा है, जहां कुछ दिनों के अंतराल पर कुछ न कुछ नया होता रहता है। चंद्रमोहन को अनुराधा से प्यार हो जाता है। कई दिनों तक वह गायब रहते हैं। खोजबीन चलती है, लेकिन उनका कुछ पता नहीं चलता है। फिर अचानक एक दिन प्रकट होते हैं, लेकिन इस बार चंद्रमोहन चांद मोहम्मद बन चुके होते हैं और साथ में होती हैं उनकी नई पत्नी अनुराधा उफॆ फिजा। एक-दूसरे के हाथों में हाथ डाले, मीडिया के सामने उन्होंने खुलकर अपने प्यार का इजहार किया। कुछ ही दिनों बाद चांद मोहम्मद को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी। फिजा को पाने के बाद चंद्रमोहन अपनी पहली पत्नी और बच्चों को भूल चुके थे। अभी उनके प्यार को कुछ ही माह बीते थे कि चंद्रमोहन उर्फ चांद मोहम्मद फिर गायब हो जाते हैं। फिजा ने उनके घरवालों पर आरप लगाया और फिर चांद की खोजबीन शुरू होती है। इस बीच फिजा ने नींद की गोलियां निगल लीं. उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। लेकिन चांद का तब तक कोई पता न था। फिर चांद का फोन आता है कि वह ठीक है। यहीं पर दोनों के प्यार में दरारें दिखनी शुरू हो गईं थीं। अभी कुछ ही दिन बीते थे कि फिजा को पता चला कि वह विदेश चला गया है। इस बार फिजा की गुस्सा का ठिकाना न था। उसने चांद मोहम्मद पर बलात्कार का आरप लगा दिया। शिकायत दी गई। चांद का जवाब आया कि वह इलाज कराने गया है और फिजा का मानना था कि वह अपनी पहली बीवी और बच्चों के साथ घूम रहा है। फिर एक और टर्निंग प्वाइंट। चांद ने एसएमएस के माध्यम से फिजा को तलाक लिख कर भेज दिया। उसके बाद से दोनों ही तरफ से आरोपों का दौर शुरू हो गया। फिर एक दिन अचानक चांद लौट आया। फिजा के घर के बाहर वह घंटो बैठा रहा, फिर फिजा आई और दोनों को इस तरह एक साथ देख कर यही लग रहा था कि फिजा ने चांद को माफ कर दिया है और उन्हें एक-दूसरे का प्यार मिल गया है। उस समय चांद ने तलाक वाली बात पर कहा था कि तीन बार तलाक लिखने से तलाक होता है, मैंने तो दो ही बार तलाक लिख था। हालांकि फिजा ने साफ कहा था कि वह चांद मोहम्मद पर यकीन नहीं कर सकती। उसे माफ करने के बारे में वह सोचेगी। फिर चंद्रमोहन के कुल्हे का दिल्ली में ऑपरेशन और फिजा का रियलिटी शो में जाना। रियलिटी शो से फिजा जिस दिन वापस आईं, उस दिन उनका जन्मदिन था, लेकिन चांद ने उन्हें फोन नहीं किया था। फिर चांद ने मां जसमा देवी के साथ हिसार के सपरा अस्पताल में अपना इलाज शुरू करवाया। यहीं उन्होंने कहा कि वह फिर से चंद्रमोहन बनने जा रहे हैं। इस बार तो फिजा के गुस्से का ठिकाना ही न रहा। चांद के साथ-साथ उन्होंने उनकी मां को भी निशाने पर लिया। फिजा ने कहा कि चांद के पूरे परिवार का दिमाग फिर गया है। उन्हें किसी अच्छे डॉक्टर की आवश्यकता है। चांद को सिरफिरा बताते हुए फिजा ने यह भी कहा कि चांद के घर वापस आने पर वह उन्हें माफ करने के बारे में सोचने लगी थीं, लेकिन अब तो सवाल ही नहीं उठता। यह सब तो २७ जुलाई तक की ही बात है। यानी उनकी शादी के अभी एक साल भी पूरे नहीं हुए हैं। ड्रामा तो अभी जारी है...</span></span></span></div></span>Saurabh Sumanhttp://www.blogger.com/profile/13529168664401073213noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-16136672595039167892009-07-25T13:32:00.000-07:002009-07-25T13:36:43.351-07:00अच्छी श्रद्धांजलि दी है तुमने सोनिया<span class="Apple-style-span" style=" white-space: pre-wrap; font-family:Mangal;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">प्यार एक शब्द, एक लफ्ज, एक एहसास है। सागर से गहरा और पवॆतों से ऊंचा है, इसे इतना नीचे नहीं गिरना चाहिए था सोनिया। हरियाणा के नरवाना जिले के सिंहवाला गांव में पिछले दिनों जो कुछ हुआ, वह भले ही खापों के अमानवीय फैसलों का नतीजा था। उनके तुगलकी फरमान से कई बार पति-पत्नी तक को भाई-बहन मानने पर मजबूर होना पड़ा है। कितने घर उजड़ गए हैं। खापों के असि्तत्व और हरियाणवी समाज में उनकी प्रासंगिकता बहस का एक अलग विषय हो सकता है, लेकिन अपने प्रेमी वेदपाल की मौत पर सोनिया की श्रद्धांजलि शायद ही कोई भूल पाए। इसे ही कहते हैं यू-टनॆ। वेदपाल और सोनिया दोनों को ही इस बात का पता होगा कि उनकी शादी इतनी आसानी से स्वीकार नहीं होगी। पूरी उम्मीद है कि दोनों ने साथ जीने-मरने की कसमें खाई होंगी। लेकिन प्रेम की इस कहानी में वेदपाल जीत गया और सोनिया ने अपनी बेवफाई का एक ऐसा उदाहरण पेश किया, जिसे प्यार करने वाले तो शायद कभी माफ न करें। जिस रात उसका कत्ल हुआ, उस दिन वह अपनी पत्नी सोनिया को उसके घर से लाने गया था। खापों ने उसे सोनिया को ले जाने नहीं दिया और उसकी हत्या कर दी। व्यवस्था की यह अजीब विडंबना है कि व्यवस्थातन्र नाकाम रही। बहरहाल, सोनिया का अगले दिन यह बयान आया कि वेदपाल ने उससे जबरदस्ती शादी की थी। वह उसे नशे का इंजेक्शन देता था। उसे बरगला कर घर से भगा ले गया था। एक-एक झूठ ऐसा कि हर झूठ पर सोनिया के लिए बददुआएं ही निकले। किसी ने कहा, उसकी मजबूरी रही होगी। मैं कहता हूं, कौन-सी मजबूरी। अपने घरवालों को बचाने की मजबूरी, वह तो फंस ही चुके हैं, इस बयान से उनका कोई भला नहीं होने वाला। भला होगा तो उन खापों का, जिन्होंने वेदपाल की जान ली। उसी वेदपाल की जिसने उसका साथ पाने के लिए अपने जान की परवाह तक नहीं की। अच्छा सिला दिया सोनिया ने। पता नहीं ऐसे लोग प्यार के रास्ते पर आगे बढ़ते ही क्यों हैं। निभाने का जज्बा न हो, तो प्रेम की शुरुआत ही क्यों करते हैं ऐसे लोग। प्रेम में प्रेमी की जान चली गई और प्रेमिका प्रेमी को ही गलत ठहरा रही है। अच्छी श्रद्धांजलि दी है तुमने सोनिया। कम से कम इसके लिए लोग तुम्हें याद तो रखेंगे।</span></span>Saurabh Sumanhttp://www.blogger.com/profile/13529168664401073213noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-83870028240094618172009-07-20T11:14:00.000-07:002009-07-20T12:20:35.835-07:00हमारे संपादक जी<span class="Apple-style-span" style="font-family:Mangal;font-size:100%;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: 13px; white-space: pre-wrap;">इंडिया में किसी को ये कह दो आप की आप बहुत अच्छे हैं तो ज्यादातर का जवाब यही होता है की क्यों मजाक कर रहे हो भाई. फिर उसके बाद उसके मन में सबसे पहला सवाल यही खडा होता है की उसने ऐसा क्यों कहा. तरह तरह की संभावनाओं की कसौटी पर उसे कसा जाता है और फिर निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है. कहने का मतलब यहाँ हर कुछ के नेगेटिव अस्पेक्ट्स पर ज्यादा विचार होता है. वहीँ अमेरिकी देशों में अगर आप किसी की तारीफ करें तो जवाब एक वर्ड में मिलेगा थैंक्स. किसी की तारीफ करने का कोई मतलब नहीं निकला जाना चाहिए. उसे नकारात्मक तर्कों की कसौटी पर न कसकर तहे दिल से स्वीकार करना चाहिए. बहरहाल, आज मैं बात कर रहा हूँ हमारे संपादक जी की. संपादक जी कोई पद नहीं, ये वो संबोधन है जो हम अकु श्रीवास्तव जी के लिए आज भी प्रयोग करते हैं। आज भले ही वह पटना में है, लेकिन उनके साथ कम समय मे ही उन्हें जितना समझा उसके लिए अगर किसी विशेषण का प्रयोग किया जाए तो मैं उन्हें ग्रेट कैलकुलेटर कहूंगा। कैलकुलेटर इसलिए क्योंकि काम, प्रतिभा, योग्यता और संबंधों को लेकर उनका कैलकुलेशन शायद ही कभी गलत बैठा हो। एक बेहतर संपादक होने के साथ ही वह एक बहुत अच्छे मैनेजर भी हैं। मुझे पता नहीं कि विधिवत प्रबंधकीय शिक्छा उन्होंने ली है या नहीं, लेकिन प्रबंध ऐसा कि एक साधारण आदमी को इसके उद्देश्यों का पता ही न चले। यह उनकी प्रबंधकीय योग्यता ही थी किहर किसी को यही लगता था कि संपादक जी उनके सबसे करीब हैं। अपने साथ काम करने वालों का जितना ख्याल संपादक जी रखते थे, वैसा कम ही दिखता है हर..किसी की जरूरत को समझना और उसे पूरा करने का उन्होंने भरसक प्रयास किया। दूध नापने के लिए लैक्टोमीटर का प्रयोग किया जाता है। दूध अगर बिल्कुल शुद्ध है, तो उसे खाने के काम में, थोड़ा कम शुद्ध है तो चाय बनाने के काम में और अगर शुद्ध है ही नहीं तो उसे फेकना ही सही रहता है, नहीं तो उससे स्वास्थ्य का नुकसान हो सकता है। संपादक जी को इस मामले में भी मैं ग्रेट कैलकुलेटर कहूंगा क्योंकि किसी की काबीलियत को वह जितना बेहतर माप सकते हैं, वह अद्भुत है। उनकी आदत है कि वह सुनते कम हैं, लेकिन समझते पूरा से थोड़ा ज्यादा हैं। माचॆ २००८ में जब हमारी टीम चंडीगढ़ हिन्दुस्तान पहुंची, तो उन्होंने ९० पेज के फीचर सप्लीमेंट की जिम्मेदारी धर्मेंद्र जी को दी, जो शुरू से जनरल डेस्क पर ही काम किया करते थे और उन्हें खासतौर से इसलिए ही जाना जाता था। अक्सर शाम के समय हमलोग यही बात करते थे कि ९० पेज का सप्लीमेंट में जिस तरह काम हो रहा है, लगता नहीं कि ९० पेज निकल भी पाएंगे। लेकिन उन्होंने काम को जिस तरह टुकड़ों में बांटा और फिर उसकी कड़ी जोड़ी वह किसी आश्चयॆ से कम नहीं था। ९० पेज का ऐतिहासिक सप्लीमेंट निकला। यात्रा नाम के इस सप्लीमेंट की चर्चा आज भी होती है। इस सप्लीमेंट ने मेरे सामने काम करने के एक नए तरीके को सामने रखा, जिसमें सबसे ज्यादा जरूरी था अपने साथियों पर विश्वास। संपादक जी जिसपर विश्वास करते थे, पूरी तरह करते थे और संभवतः आज भी करते हैं। संस्थान के नजरिए से उनका पटना जाना भले ही बेहद जरूरी रहा हो, लेकिन मुझे इसका नुकसान उठा पड़ा। आज भी काम करते समय कई बार लगता है जैसे वह पीछे खड़े हों। अक्सर किसी तरह की गलती या कुछ नया होने पर हम सब उन्हें याद करते हैं। साथ ही इस बात की भी चर्चा करना नहीं भूलते कि अगर संपादक जी होते तो क्या कहते। (यह विचार नितांत मेरे अपने है। जरूरी नहीं कि दूसरा भी इससे सहमत हो। संपादक जी के बारे में अगर आप भी कुछ कहना चाहते हैं तो अपने कमेंट्स जरूर लिखें।)</span></span>Saurabh Sumanhttp://www.blogger.com/profile/13529168664401073213noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-33743954201489227102009-07-19T12:53:00.000-07:002009-07-19T12:56:23.126-07:00ज़रा सोचिये!!!<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjg_XXOz_phPg_xa_lcnOyg5pK0Skzyz8CoF0GCi5ctg9ANAOcncKYxUkiQLVed_Kzs9yodAljGKxWzMP4V9M_NoJ3DdRF6ocVszk44kF1WMP1kaqa7ZDTFsrJycVFKNxg1s0ulyElM-qc/s1600-h/PRC_LAADLI_FLYER.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 300px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjg_XXOz_phPg_xa_lcnOyg5pK0Skzyz8CoF0GCi5ctg9ANAOcncKYxUkiQLVed_Kzs9yodAljGKxWzMP4V9M_NoJ3DdRF6ocVszk44kF1WMP1kaqa7ZDTFsrJycVFKNxg1s0ulyElM-qc/s400/PRC_LAADLI_FLYER.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5360262159357665650" /></a>Saurabh Sumanhttp://www.blogger.com/profile/13529168664401073213noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-55090423360923753692009-04-26T13:50:00.000-07:002009-04-26T14:12:33.429-07:00अब ऑनलाइन रिचार्ज कर सकते हैं मोबाइल<span class="">हलाँकि </span>ये ख़बर कोई नयी नही है, लेकिन जिन्हें नही पता है उनके लिए बेहद उपयोगी है। मोबाइल रिचार्ज कराने के लिए अगर आप अब भी दुकानों के चक्कर लगते हैं या जरूरत होने पर भी नही जा पते हैं, या आपकी जरूरत के अनुसार टॉपउप या प्लान का कूपन नही मिल पता है तो अब आपके पास है वन स्टाप ऑनलाइन रिचार्ज डेस्टिनेशन। बस साइन इन करें <a href="http://www.rechargeitnow.com/">www.rechargeitnow.com</a>. इसके लिए आपके पास होने चाहिए डेबिट या क्रेडिट कार्ड और नेट बैंकिंग। आप किसी भी मोबाइल के उपभोक्ता हों, वेबसाइट पर उपलब्ध इन सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं। सबसे बड़ी बात तो ये की इसके लिए आपको कोई अतिरिक्त शुल्क नही देना होगा। इन सेवाओं का लाभ उठाने के लिए आपको वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन करना होगा, जो बिल्कुल मुफ्त है। साईट द्वारा कई चरणों में आपकी पहचान पक्की की जाती है ताकि आपके अकाउंट से कोई हेरा फेरी न कर सके। इस सुविधा को पूरी तरह सुरक्षित बनने के लिए ई मेल से लेकर आपके मोबाइल को कई चरणों में कन्फर्म किया जाता है। आप अपने जरूरत के मुताबिक अपना मोबाइल रिचार्ज करा सकते हैं। इसके अलावा आप इस सेवा का लाभ <a href="http://www.easymobilerecharge.com/">www.easymobilerecharge.com</a>, <a href="http://www.fastrecharge.com/">www.fastrecharge.com</a>, <a href="http://www.indiamobilerecharge.com/">www.indiamobilerecharge.com</a>, <a href="http://www.onlinemobilerecharge.com/">www.onlinemobilerecharge.com</a>, <a href="http://www.cashnetindia.com/">www.cashnetindia.com</a> साइट्स से भी उठा सकते हैं.Saurabh Sumanhttp://www.blogger.com/profile/13529168664401073213noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-90229339966030897292009-04-21T13:01:00.000-07:002009-04-21T14:09:36.263-07:00आज पूरा हुआ एक साल, मगर मैं खुश नही हूँली कर्बुजिये के सपनों के शहर में आज हिंदुस्तान के एक साल पुरे हो गएँ। आज पता चला की एक साल का समय कितना लंबा होता है। जैसे इस एक साल में सब कुछ बदल गया हो। जब हिंदुस्तान की शुरुवात हुई थी तब और आज के दिन में बहुत बड़ा फर्क था। आज चाह कर भी वो जोश ख़ुद में भर नही पाया जो इसके पहले दिन के प्रकाशन में था। मौसम की नमी ये अहसास दे रही थी जैसे अब हवाओं ने भी दिशा बदल दी है। एक मुट्ठी पकड़ कर अपने पास भी रखना चाहा लेकिन वो कहाँ कैद होने वाली थी। शायद मेरी तरह उस माहौल की तलाश में वो भी थी। मैंने रोकना भी नही चाहा और वो निकल भी गयी। फिर खामोशी को चीरती हुई शब्दों के बीच पसरा सन्नाटा और हम सब। कैसे भूल सकता हूँ वो दिन जब हम सब कुछ भूलकर एक नए मिशन में लगे थें। हाँ, मैं तो उसे मिशन ही कहूँगा, क्योंकि हिन्दी पत्रकारिता में हिंदुस्तान के साथ छोटे आकार में सोहनी सिटी का प्रकाशन एक नया प्रयोग था। एक ऐसे शहर में जिसके बारे में कहा जाता है की हर कोई इस शहर का हो जाता है, लेकिन ये शहर किसी का नही होता। वैसे तो कोई शहर आपका नही हो सकता, खासकर पत्रकारों के लिए। आख़िर कितने शहरों से दिल लगाया जाए। फिर जुदा तो होना है। पर दिल कहाँ मानता है। बहरहाल २१ अप्रैल २००८ के दिन हम सब पूरे जोश में थें। हम एक नया इतिहास लिखने जा रहे थें और हमने एक नया इतिहास लिख भी दिया। जोश से भर देने वाले गाने अब हिंदुस्तान के बरी है हम्मे और भी जोश भर रहे थें। हमने पुरी कोशिश की की गलतियाँ न जाए। अखबार छपने में थोड़ा लेट हुआ लेकिन हम सब वहां दते रहें। उत्साह से भरा पूरा माहौल किसी उत्सव सा अहसास दे रहा था।हमारे कदम थिरक रहे थें. अखबार छपने के बाद तो हमारी खुशी का ठिकाना न था। लग रहा था जैसे कोई जंग जीत ली हो। क़दमों की थिरकन बढ़ गयी थी, मन तो कर रहा था की आज जी भर कर नाच लें। महीने भर की थकन आज मिटा देन। लेकिन वो एक शुरुवात थी हेर दिन जंग जीतने की। संपादक जी के साथ हम सभी ने हाथों में अखबार लेकर फोटो भी खिचाई। हमारी छोटी सी टीम थी लेकिन एक परफेक्ट टीम। हर किसी की अपनी खासियत थी। किस्से कैसे काम लेना है ये संपादक जी को अच्छी तरह पता था। दिन बित्ते गएँ और हम नए नए प्रयोग करते हुए शहर में आगे बढ़ते रहें। फिर एक दिन ऐसा भी आया जब हमे पता चला की हमारी छोटी सी टीम और भी छोटी होने जा रही है। मेरे साथी धर्मेन्द्र जी का अलाहाबाद ट्रान्सफर हो गया। मुझे समझ नही आ रहा था की ये सब क्या हो रहा है। हालाँकि संपादक जी ने आश्वाशन दिया था की सब अच्छा होगा। फिर एक-एक कर ७ लोगोंका ट्रान्सफर हो गया। अब हमारी टीम और भी छोटी हो गयी थी। फिर जब ख़ुद संपादक जी का ट्रान्सफर हो गया तो हम सब हैरत में पड़ गए। मंदी के डर ने ये सोचने पैर विवश कर दिया की पता नही यहाँ एक साल पूरे होंगे भी की नही। लेकिन हर मुश्किलों से लड़ते हुए हमने जी-जान से काम किया और हर दिन बेहतर देने की कोशिश की। मुझे खुशी है ऐसी टीम के साथ काम कर जिसने सिर्फ़ और सिर्फ़ अखबार के बारे में सोचा। और आज जब एक साल पूरे होने पर हमने ऑफिस में एक छोटी सी पार्टी राखी तो एक-एक कर वो सभी याद आयें जो कभी यहीं, हमारे आस-पास की कुर्सियों पैर बैठा करते थें। निगाहें कई बार संपादक जी के केबिन की तरफ़ और हाथ फ़ोन की तरफ़ उठते जैसे इंतज़ार हो इस बात का की संपादक जी का फ़ोन आएगा और वो कहेंगे और सौरभ अगले साल क्या ख़ास करना है। लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ। सन्नाटा अब भी पसरा था, लेकिन थोडी चहल पहल के बीच कुछ शब्द अब भी कानों में पड़ रहे थें, जो कुछ और होते हुए भी कानों ko फुसफुसाहट लग रहे थें। मौका था सेलेब्रेशन का, लेकिन मैं खुश नही था। पता नही क्या, लेकिन एक कमी सी लग रही थी।Saurabh Sumanhttp://www.blogger.com/profile/13529168664401073213noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-60811700773641011242009-01-07T12:06:00.000-08:002009-01-07T12:08:21.847-08:00फरेवेल पार्टी<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgInXLhX6JOEKJi2OqMmv9k0ZobEPty0e_gea6GALplfdY4m-_qNVjJ6M-ecqyCEJqzbaBn404mgiaScWXHFdw8edc0aHWv4425jheBTHxi7r3RU-jlZ1P_3TuUYcHLKWt74hat6a04CJA/s1600-h/DSC_0043.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5288645820146880802" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 214px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgInXLhX6JOEKJi2OqMmv9k0ZobEPty0e_gea6GALplfdY4m-_qNVjJ6M-ecqyCEJqzbaBn404mgiaScWXHFdw8edc0aHWv4425jheBTHxi7r3RU-jlZ1P_3TuUYcHLKWt74hat6a04CJA/s320/DSC_0043.jpg" border="0" /></a> मोहाली में फरेवेल पार्टी के दौरान हिंदुस्तान चंडीगढ़ की टीम।<br /><div></div>Saurabh Sumanhttp://www.blogger.com/profile/13529168664401073213noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-63501246549358820542009-01-07T11:34:00.000-08:002009-01-07T12:05:11.669-08:00हमारी टीमहमारी चंडीगढ़ हिंदुस्तान की टीम। ७ जनवरी को मोहाली में फेरवेल पार्टी के दौरान की तस्वीर।Saurabh Sumanhttp://www.blogger.com/profile/13529168664401073213noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-6620462834007231532008-08-19T11:21:00.000-07:002008-08-19T11:22:10.932-07:00आज दुआ कीजिएबीजिंग ओलंपिक में आज विजेंद्र और जीतेंद्र क्वार्टर फाइनल मुकाबले में क्रमशः इक्वाडोर के कार्लोस गोजोरा और रूस के जेओर्जी बालिक्शन से भिड़ेंगे। भिवानी के इन दोनों रणबांकुरों के लिए आज की जीत ही पदक का सपना साकार कर सकती है। इसलिए इनके लिए दुआ की जानी चाहिए। जितेंद्र का मैच शाम ०४ बजकर ४६ मिनट पर और विजेंद्र का मैच शाम ६ बजकर १६ मिनट पर होगा।सुधीर राघवhttp://www.blogger.com/profile/00445443138604863599noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-31618006500313922752008-06-15T11:38:00.000-07:002008-12-08T22:42:31.532-08:00मृणाल पांडेय जी के साथ एक दिन<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEib0tjMMovwRkanXJPpIkw9PcjJMnlG7w8odtPJ4zK0SEMkwgFXVT4uVOXZEEzbUqN7_qNAgKO6xJACPhtYUcaOVl9GhuQuPVqlhPEjv_pAg_dwg4lBON0RUyjxbyRKUa2TmdWXoxp02DY/s1600-h/1340.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5212182425606559234" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEib0tjMMovwRkanXJPpIkw9PcjJMnlG7w8odtPJ4zK0SEMkwgFXVT4uVOXZEEzbUqN7_qNAgKO6xJACPhtYUcaOVl9GhuQuPVqlhPEjv_pAg_dwg4lBON0RUyjxbyRKUa2TmdWXoxp02DY/s320/1340.jpg" border="0" /></a><br /><div></div>शायद ही मैं इस दिन को भूल पाऊं, क्योंकि इस दिन हिन्दुस्तान की प्रधान संपादक मृणाल पांडेय जी के साथ हमलोगों को काफी समय बिताने का अवसर मिला। केवल इसलिए यह यादगार नहीं था, क्योंकि वह हिन्दुस्तान की प्रधान संपादक हैं, बलि्क इसलिए क्योंकि एक शखि्सयत और लेखिका के रूप में मैं उन्हें बरसों से पढ़ते भी आ रहा था। पहली बार जब उनसे दिल्ली में मुलाकात हुई थी, तो उनसे प्रभावित हुए बिना नही रही सका। अब तक लोगों को कहते सुना था और जब सामने मुलाकात हुई, तो महसूस भी किया कि लोग सही कहते थे। पहली बार मिलने के बाद से ही मेरी इच्छा थी कि मैं उनके साथ समय बिताऊं। वह समय भी जल्दी ही मिल गया। शनिवार को वह चंडीगढ़ में थीं। शाम करीब ४ बजे वह मोहाली में हिन्दुस्तान टाइम्स के ऑफिस पहुंची। मीटिंग में उन्होंने जिस सरलता से अपनी बातें रखीं और जिस मजबूती से अपने सुझाव दिए, उससे लग रहा था कि उनके सुझाव पर अभी से ही अमल कर दिया जाए। भविष्य में एचटी मीडिया की योजनाएं और वतॆमान में मीडिया के स्वरूप पर चचाॆ के बाद उन्होंने सभी से कहा कि अगर आपकी कुछ समस्याएं हों, तो हमें बताएं। कांफ्रेंस रूम से बाहर हमलोग अपने सेक्शन में पहुंचें, तो मृणाल जी ने सभी को अपने सिग्नेचर वाली डायरी भेंट की। रात में मृणाल जी के साथ ही लेकव्यू क्लब में शानदार पाटीॆ और कायॆक्रम का भी आयोजन था। संपादक अकू श्रीवास्तव जी ने पहले ही हम सभी से कह दिया था कि एडिशन ९ बजे तक छोड़ देना है। ऐसा हुआ भी। ९ बजे ही एडिशन छूटने के कारण संपादक जी ने कहा भी कि मतलब आप सब समय पर एडिशन छोड़ सकते हो, तो फिर और दिन लेट क्यों होते हो? वहां से सीधे हम लोग लेकव्यू क्लब पहुंचे। डीजे के साथ ही जैसा कि हर बड़े क्लबों में होता है, वेज-नॉनवेज की पूरी वैराइटी थी। पीने वालों के लिए भी पूरी व्यवस्था थी। मृणाल जी वहां मौजूद थीं। डीजे की धुन पर हम सभी के साथ मृणाल जी ने भी डांस किया। ११ बजे पाटीॆ अपने शबाब पर थी। केक कट चुके थे और सभी को गिफ्ट भी मिल चुका था। लाइट्स और म्यूजिक ऑफ होने के बाद कैंडल लाइट जलाई गई। हिन्दुस्तान टीम के कलाकार सहकर्मियों ने अपनी-अपनी कलाओं के नमूने पेश किए। कायॆक्रम की एंकरिंग की कमान मेरे हाथ थी। सो मेरे पास बेहतर मौका था अपनी कविताएं सुनाने का। बीच-बीच में मैंने कुछ कविताएं भी सुनाईं। कायॆक्रम ठहाकों और चूटीली प्रतिक्रियाओं के बीच रंग में था। इसके बाद खाने का दौर शुरू हुआ। तब तक रात के एक बजे चुके थे। मृणाल जी ने हम सब से विदा लीं और बेस्ट ऑफ लक कह कर चली गईं। इसके बाद धीरे-धीरे सभी लोग निकलते गए। हालांकि कुछ पीने-पिलाने वाले साथी कितनी देर रुकें, यह पता नहीं, क्योंकि अगले दिन ४ लोग छुट्टी पर थे। अगली पोस्ट में पढ़ें हमारे <span class="">संपादक अकु </span>श्रीवास्तव जी के बारे में।Saurabh Sumanhttp://www.blogger.com/profile/13529168664401073213noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-66537587950769392252008-06-12T11:03:00.000-07:002008-06-12T11:31:56.601-07:00हमारे कन्हैया जी (२)विश्वस्त सूत्रों से मालूम हुआ है कि कन्हैया जी इन दिनों गोरा बनने के लिए तन-मन-धन से जुटे हैं। टीवी पर जितने भी तरह के फेयरनेस क्रीम के विग्यापन आते हैं, वह सब उनके घर में और ऑफिस में उनके ड्रावर में देखे जा सकते हैं। हालांकि फेयरनेस क्रीम का यूज करना उनके लिए कोई नई बात नहीं है, इसके पहले भी वह क्रीम यूज करते रहे हैं, लेकिन पहले मांग कर काम चलाते थे। बाद में जिनसे मांगा करते थे, उन्होंने लाना छो़ड़ दिया, क्योंकि उनके क्रीम की खपत तो बढ़ी ही थी, साथ ही अपनी क्रीम पर से उनका भरोसा भी उठने लगा था। फिर किसी ने सलाह दी कि खुद से खरीद कर क्रीम लगाने से ही क्रीम का असर आता है, सो वह तुरंत मॉल पहुंच गए और क्रीम ले आए। सुबह, दोपहर, शाम और रात सभी समय के लिए उनके पास अलग-अलग क्रीम है, जो वह लगाते हैं। शायद उनका विश्लास है कि कोई तो असर करेगी। ये गोरा बनने का भूत उन पर किस तरह सवार हुआ, इसकी जांच की तो पता चला कि हाल ही में उनके पड़ोस में तीन लड़कियां आई हैं, उन्हें ही रिझाने के लिए वह क्रीम का यूज कर रहे हैं। उनका नाम पता न होने के कारण कन्हैया जी ने उन्हें नंबर दे दिया है। नंबर १, नंबर २, नंबर ३। कंप्यूटर को भी उन्होंने घर पर इस तरह रखा है कि पड़ोसी की खिड़की कंप्यूटर चेयर पर बैठने से सामने दिखे। कंप्यूटर पर भी उन्हें मेरे सामने वाली खिड़की में...गाना सुनना आजकल खूब पसंद आ रहा है। कल तक कन्हैया जी कहते थे कि जिंदगी में कुछ नहीं रखा है, लेकिन आजकल वह अपने दोस्तों से कहते हैं कि जिंदगी में काफी रंग है, बस नजर का फेर है।Saurabh Sumanhttp://www.blogger.com/profile/13529168664401073213noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-32143701228564146912008-06-05T11:26:00.001-07:002008-06-05T11:26:59.078-07:00हमारे कन्हैया जीएक हैं हमारे कन्हैया जी। कन्हैया जी जैसे शखि्सयत आजकल लुप्तप्राय हैं। मेरी खुशनसीबी (?) कि मुझे उनके साथ दो संस्थानों में काम करने का मौका मिला। एक प्रभात खबर दिल्ली और दूसरा आई-नेक्स्ट कानपुर। कन्हैया जी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह बहुत कूल हैं। अखबार के दफ्तरों में जहां पन्ने छोड़ने के समय काफी अफरा-तफरी का माहौल होता है। कन्हैया जी को मैने हमेशा कूल देखा है। उन्हें गुस्सा भी आता है तो उससे वह अपने ही तरीके से निपटते हैं। बिल्कुल मस्त और अजब-गजब चीजों के शौकीन। एक बार उन्हें पैसों की सख्त जरूरत थी। कहीं से उन्होंने २००० रुपए जुगाड़ किए और उसी दिन ९०० रुपए का चश्मा ले आए। वैसे मैंने कभी उन्हें चश्मा लगाते नहीं देखा। कानपुर में तो कभी मौका नहीं मिला, लेकिन दिल्ली में उनके हाथों का खाना जरूर खाया था। मिक्स वेजिटेबल मैंने जैसा उनके हाथों का खाया है, वैसा कभी नहीं खाया। अंदर से बेहद सीधे, लेकिन ऊपर से उतने ही सख्त और प्रोफेशनल दिखने वाले कन्हैया जी को काम के बीच में मुंगफली खाने का अजीब शौक है। अक्सर पेज देखते वक्त जब उनकी जरूरत होती और पता करता तो पता चलता कि वह तो नीचे गए हैं मुंगफली खाने। अकेले खाना उन्हें बहुत अच्छा लगता है। हालांकि अगर कोई दूसरा खचॆ करे, तो वह दो-तीन लोगों के साथ भी खा लेते हैं। पार्टी से परहेज करते हैं। एक बार बड़ी मुशि्कल से उनका फरजी बथॆडे हमलोगों ने मनाया तो उन्होंने खचॆ किया था। अपने में मस्त इतना रहते हैं कि शायद ही कभी अपने दोस्तों को भी याद किया होगा। कोई फोन नहीं, कोई मेल नहीं। खाली समय में इंटरनेट पर नई-नई चीजें ढूंढ़ना उन्हें अच्छा लगता है। शादी हो गई है, दो बच्चे भी हैं, लेकिन अभी भी उनके इनबॉक्स में मेट्रीमोनियल साइट से ढेरों ऑफर पड़े हैं। फुसॆत के लम्हों में उन प्रोफाइल को चेक करते हुए भी उन्हें अक्सर काम खत्म होने के बाद देखा जा सकता है। इनकी एक और खासियत यह है कि बच्चों की तरह अगर इन्हें चिढा़या जाए, तो बहुत जल्दी चिढ़ जाते हैं। मैं अक्सर उन्हें चिढाया करता था और फिर मैं और रंधीर उनकी बातों के मजे लिया करते थे। वैसे व्यक्तिगत जीवन में कई मामलों में वह रंधीर से सलाह करने के बाद ही कोई कदम उठाते हैं। कन्हैया जी उन चुनिंदा लोगों में से हैं, जो खुद ही सीखने का जज्बा रखते हैं और खुद ही कई नई चीजें कि्रएट भी करते हैं। डिजाइनिंग बहुत अच्छी करते हैं। हां, नई डिजाइनों के लिए जब तक उन्हें प्रेरित न किया जाए, वह पुराने से ही काम चलाते हैं। उनके साथ काम करते हुए कई बार तो मुझे ऐसा भी लगा कि कन्हैया जी अपनी योग्यता का महज ३०-४० फीसदी ही देते हैं। अगर उन्हें प्रेरणा मिले, तो मुझे कोई शक नहीं कि वह बहुत अच्छा कर सकते हैं, शायद सबसे अच्छा।Saurabh Sumanhttp://www.blogger.com/profile/13529168664401073213noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-1566671978285641172008-05-30T11:26:00.000-07:002008-05-30T11:42:42.455-07:00...और मैं पास हो गयानीचे जाकर मैंने दौड़कर पेपर उठाया। पहले पेज पर अंदर के पेज पर आनेवाले रिजल्ट का उल्लेख था। मैंने तुरंत वह पन्ना पलटा। और जल्दी-जल्दी अपने स्कूल का नाम ढूंढ़ने लगा। वहां किसी स्कूल का नाम नहीं था। असल में रिजल्ट स्कूल कोड के आधार पर दिया गया था। कोड मुझे याद नहीं था। मैं दौड़कर एडमिट काडॆ ढूंढ़ने गया। तब तक लैंडलाइन पर मेरे मित्र अमित का फोन आ गया। उसने बताया कि मैं सेकेंड डिविजन से पास हो गया। फिर भी मुझे तसल्ली नहीं थी। मैंने खुद से रिजल्ट देखा। पहली बार संतुषि्ट हुई कि चलो फेल नहीं हुआ, लेकिन यह मानव स्वभाव के अनुरूप तुरंत यह सोचकर असंतुष्ट हो गया कि मेरा फस्टॆ डिविजन नहीं आया। शायद फस्टॆ आता तो टॉपर होने के बारे में सोचता। बहरहाल मैं पास हो चुका था और महज ३ अंकों से मेरा फस्टॆ डिविजन छूटा था। अब बारी थी सपने बुनने की। एडमिशन के पहले कभी आईएएस, कभी किसी बड़ी कंपनी का मैनेजर तो कभी खुद को आईपीएस को रूप में सोचना तब बड़ा अच्छा लगता था। तब यह ऐसा बिल्कुल भी नहीं सोचा था कि पत्रकार बनूंगा। हर सोच में सिफॆ और सिफॆ पॉजिटिव चीजें। कभी यह नहीं सोचा कि वहां तक पहुंचने में किन मुशि्कल रास्तों से होकर गुजरना पड़ेगा। सब कुछ बहुत आसान लगता था। ऐसा लगता था, जैसे मैंने जो सोचा वह मुझे मिल गया। बस मुझे सोचना सही तरीके से था। वाकई सुखद अनुभव था। पत्रकारिता मेरा शौक था और मैं उसे शौक तक ही रखना चाहता था, क्योंकि शौक जब प्रोफेशन बन जाता है, तो वह शौक नहीं रह जाता। बहरहाल, किसी अच्छे बड़े कॉलेज में दाखिला लेने का मन बनाया, जो पूरा न हो सका। प्लस टू कॉमसॆ से करने के बाद मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़कर उस इच्छा को पूरा किया।Saurabh Sumanhttp://www.blogger.com/profile/13529168664401073213noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-88599816923665939912008-05-27T11:28:00.000-07:002008-05-28T11:35:57.264-07:00वो दसवीं के रिजल्ट का इंतज़ारआज सीबीएसई दसवीं का रिजल्ट आ रहा है। आज जब रिजल्ट को लेकर कल की प्लानिंग कर रहा था, तो मुझे वह दिन याद आ गया, जब मुझे अपने बोडॆ के रिजल्ट का इंतजार था। एग्जाम के बाद रिजल्ट आने तक करीब एक महीने का समय था। इस दौरान बेहतर रिजल्ट के लिए एग्जाम में लिखे गए सवालों के जवाब का आकलन करने के बजाय मैं पूजा और मंदिरों पर ज्यादा ध्यान देने लगा था। रांची का शायद ही कोई मंदिर बचा हो, जहां मैंने पूजा-अचॆना न की हो। वह १९९५ का समय था और उस साल नया सिलेबस इंट्रोड्यूज हुआ था। इसलिए डर ज्यादा था। रिजल्ट का दिन मुझे आज भी याद है। रात भर मुझे नींद नहीं आई, क्योंकि अगले दिन मेरे भविष्य का फैसला होना था। वैसे मैं इस बात को लेकर कम परेशान था कि रिजल्ट खराब होने पर मेरा भविष्य कैसा होगा, इस बात को लेकर ज्यादा परेशान था कि अगर फेल हो गया तो मेरे साथी मुझे क्या कहेंगे। इसकी वजह यह थी कि १५०० बच्चों के उस मिशनरी स्कूल का न केवल मैं स्कूल लीडर था, बलि्क कई तरह के कार्यक्रमों मैं स्कूल का प्रतिनिधित्व कर चुका था। टीचसॆ का भी मैं प्यारा था। इतना प्यारा कि एक बार जब मैं बीमार पड़ा तो स्कूल के तकरीबन सभी टीचसॆ छुट्टी के बाद मेरा हालचाल लेने मेरे पहुंच गए थे। उनके प्यार से मैं अभिभुत था। मैं उन्हें किसी भी तरह निराश नहीं करना चाहता था। रात में ही मैने प्लानिंग कर ली थी कि अगर फेल हो गया, तो मुझे क्या करना है। इसलिए मैं निशि्चंत था। फिर भी रात भर दिमाग में कई तरह की सीन घूम रही थी। कभी लग रहा था कि मैं टॉप कर गया हूं और सभी मुझे बधाई दे रहे हैं। कभी लगता कि मैं फेल हो गया हूं और लड़के मुझसे कह रहे हैं कि हो गई तुम्हारी लीडरई खत्म। कब नींद ने मुझे अपने आगोश में ले लिया, मुझे पता ही नहीं चला। सपने में फिर वही सब बातें। नींद खुली तो देखा अभी तो सुबह के चार ही बज रहे हैं। उसके बाद इधर-उधर अपने कमरे में ही टहलता रहा। मैं घर के लोगों को भी यह एहसास नहीं दिलाना चाहता था कि मैं रिजल्ट को लेकर परेशान हूं। बहरहाल, किसी तरह ६ भी बज गए और न्यूजपेपर फेंकने की आवाज सुनाई दी। मैं दौड़कर नीचे गया....शेष अगले पोस्ट में.Saurabh Sumanhttp://www.blogger.com/profile/13529168664401073213noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-91245938767760135952008-05-26T11:23:00.000-07:002008-05-26T11:26:25.104-07:00अनिल सिन्हा जीः जाना एक सोच कादोपहर एक बजे घर से ऑफिस के लिए निकला ही था कि कानपुर आई-नेक्स्ट के एक साथी का फोन आया कि अनिल सिन्हा नहीं रहे। मैं अवाक था, मुझे ऐसी खबर की उम्मीद नहीं थी। लगा जैसे कल की ही तो बात थी, जब मैं उनसे मिला था। अनिल सिन्हा जी को मैं मार्केटिंग कम्युनिकेशन हेड या डिजाइनर नहीं मानता था। मैं उन्हें एक सोच मानता था। एक ऐसी जिंदादिल सोच जो आज की जरूरत है। पहली बार उनसे मेरा सामना दिसंबर २००७ में हुआ था। मैं उसे किसी पेज की डिजाइनिंग के विषय पर बात करने गया था। हालांकि तब मैं उन्हें अच्छी तरह जानता भी नहीं था, लेकिन जल्द ही उन्हें करीब से जानने का मौका मिला। अगस्त २००७ में कानपुर के नए ऑफिस में उनकी सीट बिल्कुल सामने थी। अक्सर कैफेटेरिया जाते वक्त उनके डेस्क से ही गुजरता था। शायद ही कोई ऐसा दिन रहा हो, जब उन्होंने मेरे साथ कोई नया आइडिया या कोई नया कंसेप्ट शेयर न किया हो। उम्र में मुझसे काफी बड़े थे, लेकिन जब मुझसे बातें करते तो २८ साल के जवान बन जाते थे। उनका व्यकि्त्तव ऐसा था कि ऑफिस का कोई भी सहयोगी उनसे किसी भी तरह की बातें कर लेता था। बेहद मजाकिया किस्म के इंसान और तुरंत सटीक टिप्पणी करने की उनकी आदत से कई बार हम सब अवाक रह जाते थे। उनके पास वाकई आइडियाज की खान होती थी। हमेशा नए प्रयोग करना उन्हें अच्छा लगता था। उनसे जुड़े लोग आज भी मानते हैं कि जिस पेज पर उनका हाथ लग जाता था, उसकी खूबसूरती बढ़ जाती थी। कभी-कभी मैं उनसे कहता था कि सर आपकी सोच समय से काफी आगे है। आप २०२० के रीडसॆ को ध्यान में रखते हैं। तब वह कहते थे कि समय से हमेशा आगे ही सोचना चाहिए। इतना सब कुछ होते हुए भी काम के परफेक्शन के मामले में वह कोई कोताही नहीं बरतते थे। ले-आउट और डिजाइनिंग में एक एमएम के मिस्टेक को भी वह तुरंत पकड़ लेते थे। उनके पास बैठने का मतलब था कि आप कुछ सीखेंगे ही। एक साल पहले उनके साथ कानपुर से लखनऊ जा रहा था। रास्ते में उनसे कुछ इधर-उधर की बातें, कुछ फैमिली की बातें और प्रोफेशनल करियर की बातों के अलावा उन्हें मुझे रंगों के प्रयोग के बारे में भी काफी बातें बताईं। उन्होंने मुझसे यह भी कहा कि जरूरत पड़े तो मुझे फोन कर लेना। अंग्रेजी बैंड के बारे में उन्हें जितनी जानकारी थी, उतनी ही जानकारी हिन्दी गानों की भी थी। वह मुझसे कहा करते थे कि दुनिया की कोई चीज ऐसी नहीं है, जो इंटरनेट पर न मिले। फीचर के पन्नों से उनका खास लगाव था। उनके सहयोग से तब हमलोगों ने आई-नेकेस्ट के लिए कई विशेष पुलआउट भी निकाले थे। मुझे याद है उन्होंने एक बार मुझसे कहा था कि सौरभ जहां भी रहो, वहां के लिए इतना और ऐसा काम करने की कोशिश करो, कि तुम्हें हमेशा याद रखा जाए। आज वाकई उनका जाना दिल को काफी दुखी कर गया। बार-बार उनकी हंसी, उनका मजाक और हर दिन सुबह यह कहना कि सौरभ आज पाटीॆ का क्या प्रोग्राम है, दिमाग में गूंज रहा हो। कानपुर से बहुत दूर हूं, लेकिन महसूस कर रहा हूं कि कैसे उनका कंप्यूटर और उनकी कुसीॆ खाली होगी। मुझे ही नहीं, सभी को बहुत याद आएंगे अनिल सिन्हा जी।Saurabh Sumanhttp://www.blogger.com/profile/13529168664401073213noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-59674355974160104972008-05-26T10:40:00.000-07:002008-05-26T10:55:11.741-07:00रिश्तों को भरपूर जिएंएक बार फिर यह कहानी भी मानवीय संवेदनाओं के हत्या की कहानी थी। एक भरोसा को तोड़ने का सिलसिला था। पिछले दिनों नोएडा के आरुषि मामले में बाप पर कत्ल का आरोप और सिटी ब्यूटीफुल (चंडीगढ़) में अनुराधा हत्याकांड में पति बलिजंदर पर पत्नी अनुराधा को मारने का आरोप। दोनों ही मामलों में काफी समानता है। दोनों ही हत्याकांड में अपनों ने हत्या की। ये इतने अपने थे कि कत्ल से पहले दोनों ही मामले में कभी किसी ने सोचा भी न होगा, ऐसा हो सकता है। महिलाएं आज सेफ नहीं है, उनके लिए चारों तरफ खतरा ही है, जैसी बातें कर भले ही हम इस मामले पर आगे बात करने की जहमत न उठाएं, लेकिन इस सच्चाई से भी हम किनारा नहीं कर सकते कि दोनों ही मामलों में हत्या का कारण भी महिलाएं थी। अनुराधा हत्याकांड में पति बलिजंदर का नूर नाम की मॉडल से संबंध थे और वह उससे शादी करना चाहता था, तो आरुषि हत्याकांड में हत्यारे डॉक्टर के किसी महिला से अवैध संबंध थे। मामला यहां महिलाओं की सेफ्टी का नहीं है। यह मामला है तेजी से बदलती हमारी लाइफस्टाइल का, हमारी असि्थरता का और सब कुछ पा लेने के लिए कुछ भी कर गुजरने की जिद का। इस पूरे मामले में हमने जो सबसे बड़ी और महत्वपूणॆ चीज खोई है वह है विश्वास और रिश्ते। इन दोनों की अहमियत आज हमारे लिए खत्म होती लग रही हैं। लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है, जब हमारे सामने कोई परेशानी होती है या हम किसी समस्या में होते हैं, तो सबसे पहले हमें अपनों की ही याद आती है। कहीं ऐसा न हो कि इस अंधी दौड़ में हम भी शामिल हो जाएं और फिर जरूरत पड़ने पर जब हम अपनों को आवाज लगाएं, तो दूर-दूर तक कहीं रोशनी की एक किरण तक नजर न आए। उस वक्त के इंतजार से बेहतर है हम संभल जाएं और उन रिश्तों को भरपूर जिएं, जो ईश्वर ने हमारे लिए या हमने दिल से बनाए हैं।Saurabh Sumanhttp://www.blogger.com/profile/13529168664401073213noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-78890488549121263482008-05-20T13:31:00.000-07:002008-05-20T14:29:31.485-07:00अनुभव चंडीगढ़ का-१सौरभ जी,<span class=""> धन्यवाद, शायद आप से मेरी मुलाकात दिल्ली मे दैनिक हिंदुस्तान के आफिस मे हुई थी। अखबारी दुनिया की कुछ बातें आप के साथ शेयर हुई। कुछ पुराने दोस्तों का समाचार भी मिला। आपको कानपूर जाना जरुरी था। सो जल्दी निकल पड़े। लेकिन तय हो चुका था की अब साथ काम करना है। मुलाकात हिंदुस्तान के सबसे खूबसूरत शहर चंडीगढ़ में होगी। सभी साथियन को जल्दी ही चंडीगढ़ बुला लिया गया। सो होली बीती नहीं की पूरे जोशोखरओश </span><span class=""> से सिटीब्यूटीफूल पहुच गए। सभी के सामने कड़ी चुनौती थी। तैयारी शुरू हुई और २१ अप्रिल को दैनिक हिंदुस्तान सोहनी सिटी के साथ सिटीब्यूटीफूल मे रहने वालों के सामने था। अब बात करते है इस शहर की...</span><br /><span class="">वैसे तो चंडीगढ़ को हिंदुस्तान का सबसे सुंदर शहर कहा जाता है। मुझे भी यह शहर पंसंद आया। लेकिन सच कहूँ तो दिल से नही, मेरे साथ आये कई सथिओं ने भी कहा। इसकी वजह भी थी अपनी या और साथियन की जिंदगी कभी इतना व्यवथित नही रहा जितना यह शहर है। इस लिए शुरुआती मुश्किलो से जूझना पड़ा। सच कहता हूँ दोस्तो, वैसे शहर मैं आपका भी मन नही लग सकता जहा चाय पीनी हो तो मीलों चलाना हो। </span><br /><span class=""></span><br /><span class="">दोस्तो रात के तीन बज चुके है ड्यूटी भी करनी है सो फ़िर मिलेगे चंडीगढ़ की यादों के साथ.... </span><br /><span class=""></span><br /><span class="">गुड लक </span><br /><span class=""></span><br /><span class="">गंगेश श्रीवास्तव </span>gangesh srivastavhttp://www.blogger.com/profile/01012316914071868835noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-32763914289023578522008-05-20T13:29:00.000-07:002008-05-20T13:59:55.209-07:00अब हिंदुस्तान की बारी है (२)जब मैं स्कूल में था टू अक्सर सोचा करता था की कभी मौका मिले टू पंजाब के गावों में कुछ महीने जरूर बिताऊंगा। टैब शायद मुझे यह भी नही पता था की पत्रकारिता को अपना कैरेअर बनाऊगा और रांची, डेल्ही, कानपूर, लखनऊ, चंडीगढ़ जैसी जगह घूमने का मौका मिलेगा। टैब शायद फिल्मों <span class="">में पंजाब के गावों </span>की हरियाली और खूबसूरती बहुत अच्छी लगती थी। आज वाकई जब जब चंडीगढ़ आया , तो लगा जैसे वर्षों पुराना सपना पूरा होने वाला है। शुरवात में तो यहां की शांति और व्यवस्था मेरे लिए एक बिल्कुल नया अनुभव था। पंजाब की सभ्यता और संस्कृति वाकई काफी समृद्ध है। चंडीगढ़ और आसपास के गांवों को देखकर यही लगता है कि मैं अपने सपनों के गांव से बेहद करीब हूं। साफ-सुथरी जगह, हरियाली और सब कुछ एक सिस्टम के तहत। कितना व्यविस्थत है चंडीगढ़। पहली बार इतनी विविधता के बीच काम कर रहा हूं। यहां हिन्दुस्तान की टीम में लोग पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड जैसे राज्यों से हैं। हरियाणा की भाषा शुरू से ही मुझे आकर्षित करती है। यहां हरियाणवी भाईयों के साथ काम करना वाकई अद्भुत अनुभव है। हमारे न्यूज एडीटर सुधीर राघव जी हरियाणा के हैं। आजकल वह भोजपुरी भाषा सीख रहे हैं। हमारे डिजाइनर ब्रजेश झा, जो दैनिक जागरण कानपुर से हैं, वो हरियणावी सीख रहे हैं। संपादक जी और राघव जी दोनों ही पंजाबी और हरियाणवी के अच्छे जानकार हैं। इन सबके बीच दिन काफी अच्छा गुजर रहा है। बाकी साथी भी मस्ती में काम करने के आदी रहे हैं, सो यहां भी टीम का हर सदस्य काम को पूरे इंज्वाय के साथ करता है। इनमें से कई लोग ऐसे हैं, जो इसके पहले एक या दो बार एक साथ काम कर चुके हैं, अतः पहले से भी परिचित हैं। श्रुवात का जो डर था, वह अब धीरे-धीरे जा रहा है और चंडीगढ़ अच्छा लगने लगा है।Saurabh Sumanhttp://www.blogger.com/profile/13529168664401073213noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1200268571016280591.post-74878199178828858362008-05-20T11:24:00.000-07:002008-05-20T13:11:00.690-07:00अब हिंदुस्तान की बारी है (१)अब हिंदुस्तान की बारी है। हिंदुस्तान का स्लोगन यही है। बात चाहे हिंदुस्तान के मार्केट की हो <span class="">या मेरी। </span>बारी तो हिंदुस्तान की ही है। २८ माचॆ को जब पहली बार <span class="">यहां </span>है था, तो मुझे डेल्ही की याद आ गयी। रांची से जब पहली डेल्ही गया था, तो प्रभात खबर <span class="">का </span>ऑफिस घाजिअबाद में बनाया गया था। वह भी <span class="">एक </span>नयी शुरुवात <span class="">थी। </span>डेल्ही में तब हमारे पास एक भी कंप्यूटर नहीं था। सारा कुछ हम दो लोगों के <span class="">ही </span>जिम्मे था। मैं और रंजन <span class="">श्रीवास्तव </span>फिलहाल <span class="">वह </span>डेल्ही में लाइव <span class="">एम </span>मीडिया <span class="">के </span>निदेशक हैं। यह कंपनी भी उन्हीं की है। हम दोनों को <span class="">ही </span>खरीदारी से लेकर डेल्ही में ऑफिस करने और टीम बनाने का काम पूरा करना था। एक साल के अंदर ही हमने डेल्ही में एक शानदार ऑफिस <span class="">बना </span>लिया था। तब १७ लोगों की टीम भी हो गई थी। प्रभात खबर का सारा <span class="">फीचर </span>डेल्ही शिफ्ट <span class="">कर </span>दिया गया। <span class="">इसके </span>अतिरिक्त खबरों का भी काम होता था. दो <span class="">तेजतर्रार </span>रिपोर्टर प्रवीण कुमार झा और अंजनी ने प्रभात खबर को कई breaking न्यूज दी। <span class="">बहरहाल </span>डेल्ही की याद इसिलए aayee ki जब मैं पहली बार गजिअबाद पहुंचा, तो वहां के वीराने को देखकर मैं परेशान हो गया। मुझे लगा शायद ही मैं यहां काम कर पाऊं। lekin धीरे-धीरे सब कुछ अपना सा लगने लगा। चंडीगढ़ में भी शुरुवात में सब कुछ बड़ा अजीब-सा लग रहा था। यहां <span class="">की </span>शान्ति mujhe सन्नाटा लग रहीथी, lekin अब सबकुछ bahut alag hai। baki अगले post mein.Saurabh Sumanhttp://www.blogger.com/profile/13529168664401073213noreply@blogger.com0