गुरुवार, 5 जून 2008

हमारे कन्हैया जी

एक हैं हमारे कन्हैया जी। कन्हैया जी जैसे शखि्सयत आजकल लुप्तप्राय हैं। मेरी खुशनसीबी (?) कि मुझे उनके साथ दो संस्थानों में काम करने का मौका मिला। एक प्रभात खबर दिल्ली और दूसरा आई-नेक्स्ट कानपुर। कन्हैया जी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह बहुत कूल हैं। अखबार के दफ्तरों में जहां पन्ने छोड़ने के समय काफी अफरा-तफरी का माहौल होता है। कन्हैया जी को मैने हमेशा कूल देखा है। उन्हें गुस्सा भी आता है तो उससे वह अपने ही तरीके से निपटते हैं। बिल्कुल मस्त और अजब-गजब चीजों के शौकीन। एक बार उन्हें पैसों की सख्त जरूरत थी। कहीं से उन्होंने २००० रुपए जुगाड़ किए और उसी दिन ९०० रुपए का चश्मा ले आए। वैसे मैंने कभी उन्हें चश्मा लगाते नहीं देखा। कानपुर में तो कभी मौका नहीं मिला, लेकिन दिल्ली में उनके हाथों का खाना जरूर खाया था। मिक्स वेजिटेबल मैंने जैसा उनके हाथों का खाया है, वैसा कभी नहीं खाया। अंदर से बेहद सीधे, लेकिन ऊपर से उतने ही सख्त और प्रोफेशनल दिखने वाले कन्हैया जी को काम के बीच में मुंगफली खाने का अजीब शौक है। अक्सर पेज देखते वक्त जब उनकी जरूरत होती और पता करता तो पता चलता कि वह तो नीचे गए हैं मुंगफली खाने। अकेले खाना उन्हें बहुत अच्छा लगता है। हालांकि अगर कोई दूसरा खचॆ करे, तो वह दो-तीन लोगों के साथ भी खा लेते हैं। पार्टी से परहेज करते हैं। एक बार बड़ी मुशि्कल से उनका फरजी बथॆडे हमलोगों ने मनाया तो उन्होंने खचॆ किया था। अपने में मस्त इतना रहते हैं कि शायद ही कभी अपने दोस्तों को भी याद किया होगा। कोई फोन नहीं, कोई मेल नहीं। खाली समय में इंटरनेट पर नई-नई चीजें ढूंढ़ना उन्हें अच्छा लगता है। शादी हो गई है, दो बच्चे भी हैं, लेकिन अभी भी उनके इनबॉक्स में मेट्रीमोनियल साइट से ढेरों ऑफर पड़े हैं। फुसॆत के लम्हों में उन प्रोफाइल को चेक करते हुए भी उन्हें अक्सर काम खत्म होने के बाद देखा जा सकता है। इनकी एक और खासियत यह है कि बच्चों की तरह अगर इन्हें चिढा़या जाए, तो बहुत जल्दी चिढ़ जाते हैं। मैं अक्सर उन्हें चिढाया करता था और फिर मैं और रंधीर उनकी बातों के मजे लिया करते थे। वैसे व्यक्तिगत जीवन में कई मामलों में वह रंधीर से सलाह करने के बाद ही कोई कदम उठाते हैं। कन्हैया जी उन चुनिंदा लोगों में से हैं, जो खुद ही सीखने का जज्बा रखते हैं और खुद ही कई नई चीजें कि्रएट भी करते हैं। डिजाइनिंग बहुत अच्छी करते हैं। हां, नई डिजाइनों के लिए जब तक उन्हें प्रेरित न किया जाए, वह पुराने से ही काम चलाते हैं। उनके साथ काम करते हुए कई बार तो मुझे ऐसा भी लगा कि कन्हैया जी अपनी योग्यता का महज ३०-४० फीसदी ही देते हैं। अगर उन्हें प्रेरणा मिले, तो मुझे कोई शक नहीं कि वह बहुत अच्छा कर सकते हैं, शायद सबसे अच्छा।

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