मंगलवार, 17 जुलाई 2007
एक मौका कैम्पस को याद करने का
बडे दिनों बाद काम से थोड़ी-सी फुर्सत के बाद आज फिर कैम्पस कि याद आ गयी। सोचा स्क्रीन पेर बैठ कर कुछ लिखते हुए याद करूं। याद ऐसे आयी कि कुछ दिनों पहले जब मैं छुट्टी पर घर गया था, तो कई मित्रों से मुलाक़ात हो गयी। कैम्पस के वो मित्र आज कितने बदले बदले से नज़र आ रहे थें। कैम्पस कि चंचलता और शरारतों ने अब जिम्मेवारी और गंभीरता का स्थान ले लिया है। मैंने अपने मित्र जे से कहा याद है तुम्हे तुम कैसे केंपस में शरारतें किया करते थे, कहॉ गयी वो शरारतें? चलो कुछ देर के लिए वही जे बन जाओ। हमलोग लेक के किनारे बैठकर उन दिनों को याद कर रहे थें, जब हम एक सिगरेट पीन के लिए साईकिल से ४ किलोमीटर कि दूरी तय कर यहाँ आते थें। तब शायद इस लेक के जल में भी शरारत थी, आज यह भी बेहद शांत पड़ा है, बिल्कुल हमारे बहरी मन कि तरह। हाँ, बाहरी मन ही, क्योंकि अंतर्मन में तो आज भी वही कैम्पस वाली चपलता है, जिसे हम ना चाहते हुए भी छिपाकर रखते हैं। लेकिन आज जब जे से मुलाक़ात हुई तो हमने कैम्पस के दिनों को फिर से जिया। कैसे और क्या बात हुई, अगले पोस्ट में।
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