सोमवार, 2 जुलाई 2007

ये मानव रूप क्यों धरा ?

काम काम काम मिलता नहीं आराम , क्या करुं नाराज है मेरी जान ।
अखिर काम भी क्या ब्ला है? साला मनुष्य योनि में जनम लेना ही गुनाह है!
काश कोई परिंदा होते तो आराम से नीले गगन में उड़ते रहते , जब मन आता निचे उतरते नहीं तो नील गगन में कुलाचे मारते रहते ।
परिंदा ना सही कोई जानवर भी होता तो ऑफिस की किचकीच तो न सहना परता । आराम से जंगल में घुमते कोई काम का प्रेशर नहीं होता, जब मन करता सोते जब मन करता जागते
अब जब पिछले जनम के गुनाहों का फल मिल गया और मनुष्य योनि में जनम ले ही चुकें हैं तो कम से भाग कर कहॉ जाऊंगा । अब भले इस कम के कारन दोस्त सभी नाराज हैं कि उन्हें समय नहीं दे पाथा हूँ । कुछ खास इसलिया नाराज हैं कि कहीँ घुमाने नही ले जता हुईं , अब भगवन से यही मांगता हुईं की सारे कर्मो सॉरी कुकर्मों कि सजा यहीं दे दें और दया दिखाते हुए अगले जनम मोहे मानव रूप ना दीजे !
वैसे किसी कैंपस के दोस्त के पास मेरी समस्या का समाधान है तो कृपया मुझे जरुर बताएं!

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