शुक्रवार, 29 जून 2007
नेताजी के साथ कंपस का राउंड
बीए सेकेंड इयर में पहुंचा, तब तक मुझे युनिवर्सिटी के सीनेट हाल के सामने वाले बरगद की हवा लग चुकी थी....जब युनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स लीडर्स को देखता, कि उनके पीछे १५-२० लौंडे चिलांडु की तरह घूमते. नेता जी सफेद कुर्ता पहने खसखसी दाड़ी रखे...ऐसे लगते थे जैसे संसद के सत्र में भाग लेने जा रहे हैं. ...वो कंपस का राउंड मारते तो तो उन्हें देखकर सारी लड़कियां खुशर-फुसर करने लगतीं....ये देखकर मैं सोचने लगता कि यार अच्छी भौकाली लाइफ है...कुछ दिन मैंने भी उनके साथ कंपस के राउंड मारे, सोचा कि शायद अपना भी कुछ हो जाय..रोज-रोज लड़कों के साथ सरस्वती घाट जाने में मजा नहीं आता था, क्योंकि वहां जाकर रोज एक ही काम रहता था कपल्स को देखकर फ्रश्टेशन में उनके ऊपर कमेंट्स पास करना..., पर नेताजी भाइयों के साथ घूमने से कोई फायदा नहीं हुआ...लड़कियां जो कभी-कभी बात कर लेती थीं वो कटने लगीं...हां भाई लोंगो से दोस्ती करके ये फायदा जरूर हुआ कि पेपर आउट करवाना, एडमिशन करवाना जैसे काम करवा करके सिगरेट और बियर का खर्च निकाल लेना................continuएड.
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