अपनी लाइफ graduation के पहले तक बड़ी सूनी-सूनी थी। क्योंकि पहले boys कालेज में पड़ते थे, लड़कियों से दोस्ती करना तो दूर , बात करने पर भी पर सीबीआई कि तरह घरवालों कि नज़र रहती थी . खासकर छोटे भाई की, वोह तो अब्बा जान का पक्का खबरी था। उससे हमेशा मेरी फटती थी। अन्दर कुंठा के शिकार हो रहे थे। जब युनिवर्सिटी पहुचे तो देखा कि खूबसूरत और सेक्सी लडकियां कसी जीन्स पहने लड़को के साथ घूम रही हैं. कुछ लड़के तो उनके साथ घूमना deserve करते थे पर कुछ तो साले सिगरेट पीते और पाजामे से भी ठीली जीन्स पहने चूतिये लग रहे थे। उनको देखकर अन्दर से आवाज़ आती थी कि साला हममें क्या कमी है। पर अगर कमी नही है तो......frastated क्यों....? निष्कर्ष निकला गया कि अब लडकिया सीदे- सादे रहने से पटने वाली नही हैं.....अब हम भी धुएं का छल्ला उदायेंगे ...........................बाकी कल.....
अरविंद मिश्रा
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