सचिन भाई शुक्रिया, मैंने तो कानपुर में भी कई बार ऐसा करने की कोशिश कि थी, लेकिन आपने मौका ही नही दिया। कभी राजधानी में बैठें तो जम कर सुनूँगा और परहुंगा भी। वैसे आप ब्लोग पढ़ते रहें और लिखते रहें, इसमे आपको मेरी ही नही कैम्पस से जुडे सभी सहयोगियों के पन्ने पढने को मिलेंगे। प्रभात खबर के कुंदन पूछ रहे थें कि ये सचिन वही रांची वाला है क्या। मैंने उन्हें बता दिया कि हाँ ये वो ही कवि सचिन हैं। मेरे कवि सचिन कुछ कवितायेँ पोस्ट कर दें।
सचिन said...
सौरव भाई आप तो ऐसे ना थे । यार ये क्या बात हुई सिर्फ एड देकर चलते बने । कभी डायरी के कुछ पन्ने पढवा भी दो । ये कुछ उसी तरह हैं कि हलवाई कहे कि भाई बहुत बढिया मिठाई बनी हैं, शानदार आइटम हैं और भी तारीफ की जाये और जब सुनने वाले का मुह रसमलाई हो जाये तो दुकान बंद कर दे । अरे भईया पट खोलो और जरा चखाओ कि क्या माल हैं।
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