सोमवार, 25 जून 2007

भैंस के ऊपर मैं , मेरे ऊपर बाईक

आज के युवा बाईक ऐसे चलते हैं जैसे हवाई जहाज , उन्हें बाईक भी घर में आसानी से मिल जाते हैं, लेकिन जब मैं १३ साल का था, तब बाईक एक सपने कि तरह था । जब भी मैं किसी को बाके चलते देखता तो मन करता कि मैं भी पंख लगा कर बाईक पर उरुं और मस्ती करूं । मेरे घर में स्कूटर था, जिसे मैं गाहे-बघाहे निकल लेटा और अपने दोस्तों को कहता कि उसे धकेलो , मुझे चलाना नहीं आता था । मेरे मामा के पास बाईक था, एक दिन वी अपने दोस्त के साथ आये थे, मामा खाना खाने लगे तो मैं उनके दोस्त को बोला कि मुझे बाईक चलाना सिखा दें । उन्होने मुझे बाईक के बारे में समझाया और मुझे बाईक दे कर खुद पिछे बैठ गए धीरे-धीरे मैं आगे बढ़ा । कुछ दूर तक मैंने ठीक बाईक चलाया, फिर सामने एक ट्रक आ रहा था , उसे देखते ही मैंने बाईक को साइड किया बगल में एक भैंस खरी थी , हम दोनो भैस के ऊपर गिरे । हम दोनो के भार से भैंस गिर गयी, भैस के ऊपर मैं और मेरे ऊपर भैंस के ऊपर मैं , मेरे ऊपर बाईक मजेदार लग रही थी, कुछ लोगो ने हमे उठाया। मुझे कोई खास चोट नही आयी थी लेकिन मामा के दोस्त को काफी चोट आयी, घर आकार मैंने किसी को नही बताया, उस दिन के बाद मैंने बाईक चलाना सिख लिया।

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