सचिन भाई, यही तो आपकी खास बात है। इसमें दो राइ नही कि आप अच्चा लिखते हैं। ये मैं नही, आपको पढने वाला हेर कोई कहेगा। लेकिन भाई कुछ कैम्पस से जुडी यादें तो बतायें. कैम्पस के दिनों में भी क्या आज वाला सचिन ही थें ? जानने कि बड़ी उत्सुकता है।
सचिन said...
सौरव भाई कैंपस की यादों को हिलोरने के लिए धन्यवाद । दरअसल बहुत साफ कहूं तो मुझे कभी आप पर विश्वास नहीं हुआ । कारण यह है कि आप मेरे बारे में बहुत बड़ा चडाकर बोलते हैं जिसका में हक़दार ही नहीं मुझे आप वो बना देते हैं । मैंने बहुत सकुचते हुये कवितायेँ पोस्ट की थी नई इबारतें पर । दरअसल कवितायेँ मेरी निजी दिक्कतों का फलसफा ही ज्यादा हैं । इसमें आपके उस सवाल का भी जवाब निहित है कि भडास और नई इबारतें पर में कैसे अलग अलग हूँ । मुझे लगता है कि भीतर से हर आदमी के अन्दर नई इबारतें होतीं है बिल्कुल साफ सफ्फाक और निश्छल और बाहर से हर आदमी दिखना चाहता है एक भडासी । और बातें किसी पोस्ट पर होंगी । फिलहाल अलविदा
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