गुरुवार, 14 जून 2007

भाई सौरभ,
वैसे तो आमने- सामने आपसे ज्यादा बातें होती नहीं, उम्मीद है कि ब्लोग पर बतकही चलती रहेगी। आपने इसके बहाने पुराने दिनों की याद ताजा कर दी। हालांकि मैं तो कैम्पस का टाइम लगभग भूल ही चूका था, पर यहाँ देखा तो काफी लोग यहाँ पर पुराने दिनों की यादों को सहेज रहे हैं। कैम्पस के बाक़ी मित्रों से भी अनुरोध है कि मुझसे अपना संवाद बनाए रखें।
दिनेश श्रीनेत

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