मंगलवार, 26 जून 2007

कुछ यादें हमारे साथ

क्लास ८ में था। अचानक मेरे दिमाग मे ना जाने कहॉ से diary लिखने kee बात आयी। मैंने अपनी दाएरी में पुराने गाने और शायरी लिखना शुरू किया। फिर मुझे लगा कि क्यों ना मैं इस diary में लोगों के कोमेंत भी लूं। और फिर ये भी शूरू हो गया। आज ये diary पुरी तरह भर चुकी है, जिसमे केंपस के कई साथियों के कोमेंत भी शामिल हैं। १९९७ में मैं देल्ही आ गया था। नए शहर में तनहाई के दिनों में इस diary ने मेरा जितना साथ निभाया, वो मेरे लिए अनमोल था। आज भी कभी अगर उदास होता हूँ या मन फिर से कैम्पस कि तरफ जता है, तो वो diary पढने बैठ जाता हूँ। उसके एक-एक पन्ने पेर जैसे कहानी लिखी हो, ऐसी कहानी जिसे बार-बार पढना अच्चा लगता है। उसी तरह कैम्पस भी आप सभी को वापस कैम्पस की ज़िन्दगी जीने का एक मौका देता है। यकीं मानिये इस व्यस्त ज़िन्दगी में भी अगर कैम्पस लाइफ के एक पन्ने खोलेंगे तो कई पन्नों कि दास्ताँ खुद-ब-खुद लिखने का मन करेगा। कैम्पस लाइफ है ही ऐसी. आपने गौर किया होगा जब कैम्पस के दोस्त मिलते हैं, तो कैम्पस कि कितनी बातें याद आने लगती हैं। तो कुछ यादें हमारे साथ भी शेएर करें, हम सब ko कैम्पस का मित्र मानते हुए।

1 टिप्पणी:

सचिन श्रीवास्तव ने कहा…

सौरव भाई आप तो ऐसे ना थे । यार ये क्या बात हुई सिर्फ एड देकर चलते बने । कभी डायरी के कुछ पन्ने पढवा भी दो । ये कुछ उसी तरह हैं कि हलवाई कहे कि भाई बहुत बढिया मिठाई बनी हैं, शानदार आइटम हैं और भी तारीफ की जाये और जब सुनने वाले का मुह रसमलाई हो जाये तो दुकान बंद कर दे । अरे भईया पट खोलो और जरा चखाओ कि क्या माल हैं