सोमवार, 4 जून 2007

क्यों नही आतें वो दिन फिर से। जब हमें कैरियर कि चिन्ता नही थी, जब दोस्तो का साथ सबसे अच्चा लगता था। तब रिश्तों में कोई बनावटीपन नही था। हेर रिश्तों को हम दिल से जीतें थें। और हाँ हमारे वो दोस्त अब कहाँ हैं, जिनसे साथ घंटों काम्पुस में बातें करते हुए हम कल्पनाओं कि असीमित उड़ान उदा करते थें। वास्तिविक्ताओं से दूर असीमित आकाश में सपनों के पंख लगाकर उड़ना कितना अच्चा लगता था। दिल से जीते वो रिश्ते आज भी याद आते हैं। चलें एक बार फिर से उसी दुनिया में लौटकर। ज़िन्दगी को एक बार फिर से जीं कर।

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