रंधीर के बहाने बहुत कुछ कहा जा सकता है। वैसे नाम उसका रजनीश है, लेकिन शायद ही मैंने उसे कभी रजनीश कहा हो। गलत कहते हैं लोग की लोगों में अब संवेदनाएं नहीं रही। बेहद भावुक किस्म के रंधीर ने शायद ही कभी किसी का बुरा चाहा हो। उसके पास जितना कुछ भी है, वह उससे ज्यादा देना चाहता है। अपने सीमित संसाधन में भी वह हर किसी के लिए बहुत कुछ करना चाहता है। आशार्य होता है की aअज के जमाने में किसी की खुशी के लिए भी कोई इतना सैक्रीफाइज कर सकता है। मेहनत से कभी वह पीछे नहीं रहा। यही वजह थी की बहुत कम समय में ही उसने मनोरंजन की दुनिया पर अच्छी पकड़ बना ली। अपने आसपास के वातावरण में खुद को कैसे ढाला जाए यह रंधीर से सीखा जा सकता है। बुरे से बुरे स्तिथि में भी उसने साथ वालों को ढांढस ही बंधाया है। अक्सर मैं उसे समझाता था की अपने बारे में भी सोचना उतना ही जरूरी है। किसी तरह की औपचारिकता पर उसे विश्वाश नहीं।सबसे खास बात यह kइ जिस भी काम को हाथ में लेता है, उसे अपनी तरफ से बेस्ट देने की कोशिश करता है। काम किसी तरह हो जाए पर उसे विश्वाश नहीं, हमेशा अपनी तरफ से बेस्ट देने पर ही उसे विश्वाश है। दुख होता है रंधीर जैसे लोगों को कोई समझ नहीं पाता और कभी-कभी कोफ्त होती है रंधीर जैसे लोगों से भी, की क्यों नहीं बदलते वह अपने आप को। आयी -नेक्स्ट में जितने भी दिन रहा, कभी उसने किसी काम के लिए न नहीं किया।कभी-कभी बेस्ट करने की कोशिश में पन्ने लेट भी करता था। ऐसे समय में मुझे उस पर बहुत गुस्सा भी आता था, लेकिन रंधीर है ग्रेट। मेरी शुभकामनाएं हमेसा उसके साथ है।
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