मंगलवार, 27 मई 2008
वो दसवीं के रिजल्ट का इंतज़ार
आज सीबीएसई दसवीं का रिजल्ट आ रहा है। आज जब रिजल्ट को लेकर कल की प्लानिंग कर रहा था, तो मुझे वह दिन याद आ गया, जब मुझे अपने बोडॆ के रिजल्ट का इंतजार था। एग्जाम के बाद रिजल्ट आने तक करीब एक महीने का समय था। इस दौरान बेहतर रिजल्ट के लिए एग्जाम में लिखे गए सवालों के जवाब का आकलन करने के बजाय मैं पूजा और मंदिरों पर ज्यादा ध्यान देने लगा था। रांची का शायद ही कोई मंदिर बचा हो, जहां मैंने पूजा-अचॆना न की हो। वह १९९५ का समय था और उस साल नया सिलेबस इंट्रोड्यूज हुआ था। इसलिए डर ज्यादा था। रिजल्ट का दिन मुझे आज भी याद है। रात भर मुझे नींद नहीं आई, क्योंकि अगले दिन मेरे भविष्य का फैसला होना था। वैसे मैं इस बात को लेकर कम परेशान था कि रिजल्ट खराब होने पर मेरा भविष्य कैसा होगा, इस बात को लेकर ज्यादा परेशान था कि अगर फेल हो गया तो मेरे साथी मुझे क्या कहेंगे। इसकी वजह यह थी कि १५०० बच्चों के उस मिशनरी स्कूल का न केवल मैं स्कूल लीडर था, बलि्क कई तरह के कार्यक्रमों मैं स्कूल का प्रतिनिधित्व कर चुका था। टीचसॆ का भी मैं प्यारा था। इतना प्यारा कि एक बार जब मैं बीमार पड़ा तो स्कूल के तकरीबन सभी टीचसॆ छुट्टी के बाद मेरा हालचाल लेने मेरे पहुंच गए थे। उनके प्यार से मैं अभिभुत था। मैं उन्हें किसी भी तरह निराश नहीं करना चाहता था। रात में ही मैने प्लानिंग कर ली थी कि अगर फेल हो गया, तो मुझे क्या करना है। इसलिए मैं निशि्चंत था। फिर भी रात भर दिमाग में कई तरह की सीन घूम रही थी। कभी लग रहा था कि मैं टॉप कर गया हूं और सभी मुझे बधाई दे रहे हैं। कभी लगता कि मैं फेल हो गया हूं और लड़के मुझसे कह रहे हैं कि हो गई तुम्हारी लीडरई खत्म। कब नींद ने मुझे अपने आगोश में ले लिया, मुझे पता ही नहीं चला। सपने में फिर वही सब बातें। नींद खुली तो देखा अभी तो सुबह के चार ही बज रहे हैं। उसके बाद इधर-उधर अपने कमरे में ही टहलता रहा। मैं घर के लोगों को भी यह एहसास नहीं दिलाना चाहता था कि मैं रिजल्ट को लेकर परेशान हूं। बहरहाल, किसी तरह ६ भी बज गए और न्यूजपेपर फेंकने की आवाज सुनाई दी। मैं दौड़कर नीचे गया....शेष अगले पोस्ट में.
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1 टिप्पणी:
ये स्टोरी सस्पेंस पर लाके छोड़ना अच्छी बात नहीं है :-)
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