मंगलवार, 20 मई 2008

अब हिंदुस्तान की बारी है (२)

जब मैं स्कूल में था टू अक्सर सोचा करता था की कभी मौका मिले टू पंजाब के गावों में कुछ महीने जरूर बिताऊंगा। टैब शायद मुझे यह भी नही पता था की पत्रकारिता को अपना कैरेअर बनाऊगा और रांची, डेल्ही, कानपूर, लखनऊ, चंडीगढ़ जैसी जगह घूमने का मौका मिलेगा। टैब शायद फिल्मों में पंजाब के गावों की हरियाली और खूबसूरती बहुत अच्छी लगती थी। आज वाकई जब जब चंडीगढ़ आया , तो लगा जैसे वर्षों पुराना सपना पूरा होने वाला है। शुरवात में तो यहां की शांति और व्यवस्था मेरे लिए एक बिल्कुल नया अनुभव था। पंजाब की सभ्यता और संस्कृति वाकई काफी समृद्ध है। चंडीगढ़ और आसपास के गांवों को देखकर यही लगता है कि मैं अपने सपनों के गांव से बेहद करीब हूं। साफ-सुथरी जगह, हरियाली और सब कुछ एक सिस्टम के तहत। कितना व्यविस्थत है चंडीगढ़। पहली बार इतनी विविधता के बीच काम कर रहा हूं। यहां हिन्दुस्तान की टीम में लोग पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड जैसे राज्यों से हैं। हरियाणा की भाषा शुरू से ही मुझे आकर्षित करती है। यहां हरियाणवी भाईयों के साथ काम करना वाकई अद्भुत अनुभव है। हमारे न्यूज एडीटर सुधीर राघव जी हरियाणा के हैं। आजकल वह भोजपुरी भाषा सीख रहे हैं। हमारे डिजाइनर ब्रजेश झा, जो दैनिक जागरण कानपुर से हैं, वो हरियणावी सीख रहे हैं। संपादक जी और राघव जी दोनों ही पंजाबी और हरियाणवी के अच्छे जानकार हैं। इन सबके बीच दिन काफी अच्छा गुजर रहा है। बाकी साथी भी मस्ती में काम करने के आदी रहे हैं, सो यहां भी टीम का हर सदस्य काम को पूरे इंज्वाय के साथ करता है। इनमें से कई लोग ऐसे हैं, जो इसके पहले एक या दो बार एक साथ काम कर चुके हैं, अतः पहले से भी परिचित हैं। श्रुवात का जो डर था, वह अब धीरे-धीरे जा रहा है और चंडीगढ़ अच्छा लगने लगा है।

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