सोमवार, 26 मई 2008
अनिल सिन्हा जीः जाना एक सोच का
दोपहर एक बजे घर से ऑफिस के लिए निकला ही था कि कानपुर आई-नेक्स्ट के एक साथी का फोन आया कि अनिल सिन्हा नहीं रहे। मैं अवाक था, मुझे ऐसी खबर की उम्मीद नहीं थी। लगा जैसे कल की ही तो बात थी, जब मैं उनसे मिला था। अनिल सिन्हा जी को मैं मार्केटिंग कम्युनिकेशन हेड या डिजाइनर नहीं मानता था। मैं उन्हें एक सोच मानता था। एक ऐसी जिंदादिल सोच जो आज की जरूरत है। पहली बार उनसे मेरा सामना दिसंबर २००७ में हुआ था। मैं उसे किसी पेज की डिजाइनिंग के विषय पर बात करने गया था। हालांकि तब मैं उन्हें अच्छी तरह जानता भी नहीं था, लेकिन जल्द ही उन्हें करीब से जानने का मौका मिला। अगस्त २००७ में कानपुर के नए ऑफिस में उनकी सीट बिल्कुल सामने थी। अक्सर कैफेटेरिया जाते वक्त उनके डेस्क से ही गुजरता था। शायद ही कोई ऐसा दिन रहा हो, जब उन्होंने मेरे साथ कोई नया आइडिया या कोई नया कंसेप्ट शेयर न किया हो। उम्र में मुझसे काफी बड़े थे, लेकिन जब मुझसे बातें करते तो २८ साल के जवान बन जाते थे। उनका व्यकि्त्तव ऐसा था कि ऑफिस का कोई भी सहयोगी उनसे किसी भी तरह की बातें कर लेता था। बेहद मजाकिया किस्म के इंसान और तुरंत सटीक टिप्पणी करने की उनकी आदत से कई बार हम सब अवाक रह जाते थे। उनके पास वाकई आइडियाज की खान होती थी। हमेशा नए प्रयोग करना उन्हें अच्छा लगता था। उनसे जुड़े लोग आज भी मानते हैं कि जिस पेज पर उनका हाथ लग जाता था, उसकी खूबसूरती बढ़ जाती थी। कभी-कभी मैं उनसे कहता था कि सर आपकी सोच समय से काफी आगे है। आप २०२० के रीडसॆ को ध्यान में रखते हैं। तब वह कहते थे कि समय से हमेशा आगे ही सोचना चाहिए। इतना सब कुछ होते हुए भी काम के परफेक्शन के मामले में वह कोई कोताही नहीं बरतते थे। ले-आउट और डिजाइनिंग में एक एमएम के मिस्टेक को भी वह तुरंत पकड़ लेते थे। उनके पास बैठने का मतलब था कि आप कुछ सीखेंगे ही। एक साल पहले उनके साथ कानपुर से लखनऊ जा रहा था। रास्ते में उनसे कुछ इधर-उधर की बातें, कुछ फैमिली की बातें और प्रोफेशनल करियर की बातों के अलावा उन्हें मुझे रंगों के प्रयोग के बारे में भी काफी बातें बताईं। उन्होंने मुझसे यह भी कहा कि जरूरत पड़े तो मुझे फोन कर लेना। अंग्रेजी बैंड के बारे में उन्हें जितनी जानकारी थी, उतनी ही जानकारी हिन्दी गानों की भी थी। वह मुझसे कहा करते थे कि दुनिया की कोई चीज ऐसी नहीं है, जो इंटरनेट पर न मिले। फीचर के पन्नों से उनका खास लगाव था। उनके सहयोग से तब हमलोगों ने आई-नेकेस्ट के लिए कई विशेष पुलआउट भी निकाले थे। मुझे याद है उन्होंने एक बार मुझसे कहा था कि सौरभ जहां भी रहो, वहां के लिए इतना और ऐसा काम करने की कोशिश करो, कि तुम्हें हमेशा याद रखा जाए। आज वाकई उनका जाना दिल को काफी दुखी कर गया। बार-बार उनकी हंसी, उनका मजाक और हर दिन सुबह यह कहना कि सौरभ आज पाटीॆ का क्या प्रोग्राम है, दिमाग में गूंज रहा हो। कानपुर से बहुत दूर हूं, लेकिन महसूस कर रहा हूं कि कैसे उनका कंप्यूटर और उनकी कुसीॆ खाली होगी। मुझे ही नहीं, सभी को बहुत याद आएंगे अनिल सिन्हा जी।
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2 टिप्पणियां:
अनिल सिन्हा जी को श्रृद्धांजलि.
अनिल जी के प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि...
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