शुक्रवार, 30 मई 2008

...और मैं पास हो गया

नीचे जाकर मैंने दौड़कर पेपर उठाया। पहले पेज पर अंदर के पेज पर आनेवाले रिजल्ट का उल्लेख था। मैंने तुरंत वह पन्ना पलटा। और जल्दी-जल्दी अपने स्कूल का नाम ढूंढ़ने लगा। वहां किसी स्कूल का नाम नहीं था। असल में रिजल्ट स्कूल कोड के आधार पर दिया गया था। कोड मुझे याद नहीं था। मैं दौड़कर एडमिट काडॆ ढूंढ़ने गया। तब तक लैंडलाइन पर मेरे मित्र अमित का फोन आ गया। उसने बताया कि मैं सेकेंड डिविजन से पास हो गया। फिर भी मुझे तसल्ली नहीं थी। मैंने खुद से रिजल्ट देखा। पहली बार संतुषि्ट हुई कि चलो फेल नहीं हुआ, लेकिन यह मानव स्वभाव के अनुरूप तुरंत यह सोचकर असंतुष्ट हो गया कि मेरा फस्टॆ डिविजन नहीं आया। शायद फस्टॆ आता तो टॉपर होने के बारे में सोचता। बहरहाल मैं पास हो चुका था और महज ३ अंकों से मेरा फस्टॆ डिविजन छूटा था। अब बारी थी सपने बुनने की। एडमिशन के पहले कभी आईएएस, कभी किसी बड़ी कंपनी का मैनेजर तो कभी खुद को आईपीएस को रूप में सोचना तब बड़ा अच्छा लगता था। तब यह ऐसा बिल्कुल भी नहीं सोचा था कि पत्रकार बनूंगा। हर सोच में सिफॆ और सिफॆ पॉजिटिव चीजें। कभी यह नहीं सोचा कि वहां तक पहुंचने में किन मुशि्कल रास्तों से होकर गुजरना पड़ेगा। सब कुछ बहुत आसान लगता था। ऐसा लगता था, जैसे मैंने जो सोचा वह मुझे मिल गया। बस मुझे सोचना सही तरीके से था। वाकई सुखद अनुभव था। पत्रकारिता मेरा शौक था और मैं उसे शौक तक ही रखना चाहता था, क्योंकि शौक जब प्रोफेशन बन जाता है, तो वह शौक नहीं रह जाता। बहरहाल, किसी अच्छे बड़े कॉलेज में दाखिला लेने का मन बनाया, जो पूरा न हो सका। प्लस टू कॉमसॆ से करने के बाद मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़कर उस इच्छा को पूरा किया।

2 टिप्‍पणियां:

बालकिशन ने कहा…

चलिए बधाई कबूल कीजिये.
मिठाई की व्यवस्थ की जाय.
(देर से ही सही)
अपना फलसफा कुछ और ही था.
"फर्स्ट का अपन सोचते नहीं हैं
सेकेंड आएगा नहीं
और
थर्ड कहीं जाएगा नहीं"

Udan Tashtari ने कहा…

चलिये, इच्छा तो पूरी हुई. दिल्ली विश्वविद्यालय में भी पढ़ लिये.