इस मंच पर आने के बाद मैं अक्सर अपने कालेज वाले दिनों में वापस लौट जाता हूँ। एक बार कि बात है जब मैं इलाहबाद युनिवर्सिटी में फ़ाइनल सेमेस्टर में पंहुचा था। तो उस दोरान फर्स्ट येअर वाले नए लड़के दाखिले के लिए कम्पुस के चक्कर काट रहे थे, हम तीन चार दोस्त इंग्लिश विभाग के पास खडे सिगरेट का सुत्ता मार रहे थे। उन् नए मुर्गों को देखकर हमारे मॅन में उन्हें हलाल करने चुलबुली जागी। उन्हें बुलाकर मैंने एक लड़के से पूछा कि पांडव के बाप का नाम पांडु तो गान्दाव के बाप का नाम क्या होगा । उसने तपाक से कहा कि गांदु । फिर क्या था। उसकी लंबी खिंचाई हुई। उससे रंगिंग के नाम पर उन् लड़कियों को फूल दिलवाए गए और आई लव यू बोल्वाया गया, जो हमे कभी घास नही डालती थी। जिनसे हमारी, डेटिंग सिर्फ सपनों में होती थी । यानी रंगिंग के नाम पर हम अपनी भडास निकल लेते थे।
अरविंद मिश्रा
1 टिप्पणी:
विश्वविद्यालय के दिनो की याद करा दी।
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